Ashish Kumar

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दिल का टुकड़ा लेखनी प्रतियोगिता -19-Oct-2022

दिल का टुकड़ा

यह कहानी शुरू होती है एक बहुत ही खूबसूरत शहर नैनीताल से। यहाँ की मनोरम प्राकृतिक छटा जैसे मन मोह लेती है। जो भी यहाँ आता है, बस यहीं का होकर रह जाना चाहता है। और जो वापस जाता है, कोई ना कोई हसीन याद लेकर ही जाता है। 

मनोहर बाबू और उनकी धर्मपत्नी गीता भी छुट्टियाँ मनाने यहाँ आए हुए थे। वे शादी के बारह वर्षों के बाद भी अभी भी संतान सुख से वंचित थे। इसी चिंता में मनोहर बाबू की धर्मपत्नी गीता दिनोंदिन गली जा रही थीं। इसलिए मनोहर बाबू आबोहवा बदलने के लिए अपनी श्रीमती जी को लेकर नैनीताल आ गए थे। होटल में कमरा लेकर दिल्ली से इतनी दूर की यात्रा की थकान मिटा रहे थे।

बिस्तर पर लेटे-लेटे अपनी धर्मपत्नी से उन्होंने कहा - श्रीमती जी! कल हम लोग अहले सुबह ही सूर्योदय देखने के लिए चलेंगे। सुना है, यहाँ की सुबह बहुत मनोहारी होती है। सूरज जब पहाड़ों के बीच में से निकल कर झाँकता है तो ऐसा लगता है जैसे कोई गुलाब खिल रहा हो। इस नजारे को अपनी आँखों में कैद करने हम दोनों जरूर चलेंगे। उनकी धर्मपत्नी बस हाँ कह कर चुप हो गई। उनको तो बस एक ही चिंता खाए जा रही थी कि बच्चों के साथ घूमने की उम्र में वह अकेली महसूस किया करती हैं। मनोहर बाबू वक्त की नजाकत को समझ गये। उन्होंने दिलासा देते हुए कहा - क्यों चिंता करती हो जी! देखना कल के सूरज की तरह तुम्हारे गोद में भी कोई गुलाब खिलेगा। उधर से कोई जवाब ना मिलता देख, चुपचाप उनके सर को सहलाने लगे। थोड़ी देर में दोनों की आँख लग गई।

सुबह पौ फटने से पहले ही दोनों लोग तैयार होकर सूर्योदय देखने के लिए निकल पड़े। सुबह में चल रही हल्की हल्की ठंडी हवाओं ने उनके मन को रोमांचित कर दिया। पूरा तन बदन खिल उठा। निश्चित जगह पर पहुँचने के बाद उन्होंने देखा कि सूर्योदय देखने के लिए लोगों की भारी भीड़ जुटी पड़ी है। सब खुशी के मारे चिल्ला रहे थे। श्रीमती जी को इस उम्र में यह जरा भी अच्छा नहीं लग रहा था, इसलिए मनोहर बाबू उनको लेकर थोड़ा किनारे चले गए। अब इंतजार था सबको तो बस सूर्योदय होने का। एक नए सूर्य से आँख मिचौली करने का। सैलानियों की हुड़दंग वहाँ देखते ही बन रही थी। तभी एक महिला अपनी गोद में बच्चा लिए हुए वहाँ पहुँची। भीड़ से दूर अकेले में जाकर जोरो से रोने लगी। कभी बच्चे को गले से लगाती, कभी चूमती, कभी अपने सर पर हाथ रखकर चीत्कार करती। मनोहर बाबू और उनकी धर्मपत्नी को वह देख नहीं पाई थी। मनोहर बाबू की धर्मपत्नी का मन विचलित होने लगा। इससे पहले कि वह इसका कारण पूछ पाती, उन्होंने देखा कि वह एकाएक उठकर खाई की तरफ बढ़ रही है। उन्होंने मनोहर बाबू को इशारा किया तो झट से वे दौड़कर उसे पकड़ लिए। महिला विनती करने लगी - नहीं बाबू जी! मुझे छोड़ दीजिए। मुझे मरना है। मुझे अब नहीं जीना है। तब तक उनकी धर्मपत्नी भी वहाँ पहुँच गई और उसे अपने साथ लेकर खाई से दूर ले आई और उसे अपने पास बैठा लिया।

जब महिला कुछ शांत हुई तो उन्होंने प्यार से पूछा - इतनी अनमोल चीज के साथ तुम खुदकुशी क्यों करने जा रही हो? तुम्हें तो खुश होना चाहिए। एक माँ होकर दुनिया देखने से पहले इसका अंत कर देना चाहती हो। भला ऐसा भी कोई करता है क्या?

महिला बोल पड़ी - क्या करूँ? कहाँ जाऊँ? मेरी गोद में जो खेल रही है, वह इस के बाप के लिए आफत की पुड़िया बन गई है। इसका कसूर सिर्फ इतना है कि यह लड़की है। वह इसे सड़क पर फेंक देना चाहता था। इसकी जान बचाने के लिए मैं इसे लेकर घर छोड़कर निकल गई। दो दिन से इसे लेकर भटक रही हूँ। कहीं सहारा नहीं मिला। भूख से बिलबिलाती बच्ची को तड़प तड़प कर मरते तो नहीं देख सकती ना। नौ महीने तक अपने पेट में जिसे पाला, उसे अपने हाथों में तड़पता हुआ देखना पड़ रहा है। कोई मदद के लिए आगे नहीं आया। यह तो मेरे दिल का टुकड़ा है। भला इसे अलग करके मैं कैसे जी कर सकती हूँ।

मनोहर बाबू की धर्मपत्नी ने बच्ची को गोद में उठाया। वह एकदम फूल जैसी लग रही थी। हिरनी जैसी आँखें, घुँघराले बाल, गालों पर हल्की लालिमा और होंठ गुलाब की पंखुड़ियों जैसे।

मनोहर बाबू की धर्म पत्नी ने कहा - यदि तुम चाहो तो हमारे साथ रह सकती हो। यकीन मानो तुम्हारी बच्ची को मैं अपनी बेटी की तरह मानूँगी। तुम्हें भी मैं अपनी बहन की तरह मानूँगी। तुम्हारी बच्ची में मैं अपना रूप देख रही हूँ। अब यह सिर्फ तुम्हारे ही नहीं मेरे भी दिल का टुकड़ा बन गई है। मनोहर बाबू ने भी सहमति में सिर हिलाया।

महिला को जैसे उम्मीद की एक नई किरण दिखाई पड़ी। उसने अपने आँसू पोंछते हुए बच्ची को मनोहर बाबू की धर्मपत्नी गीता की गोद में दे दिया। सुबह हो चुकी थी। सूरज पहाड़ों के बीच में से निकल कर आँख मिचौली करने लगा था। मनोहर बाबू की धर्मपत्नी की गोद में खेलने के लिए एक नन्हीं सी गुलाब की कली खिल चुकी थी।

मनोहर बाबू की पत्नी ने धर्मपत्नी ने बच्ची को गोद में लेकर उसके सर को चूमा और गले से लगा लिया। फिर बोली दिल के टुकड़े को दिल के पास ही रहना चाहिए।

अगली सुबह मनोहर बाबू और उनकी धर्मपत्नी उस महिला के साथ नैनीताल से सुनहरी याद के रूप में एक दिल का टुकड़ा लेकर लौट रहे थे।

              - आशीष कुमार
          मोहनिया, कैमूर, बिहार

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16 Comments

Shnaya

21-Oct-2022 08:19 PM

शानदार

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Ashish Kumar

21-Oct-2022 08:51 PM

थैंक यू सो मच🙏🙏

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Khan

20-Oct-2022 04:08 PM

Bahut khoob 💐👍

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Ashish Kumar

20-Oct-2022 07:10 PM

बहुत-बहुत धन्यवाद

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Abhinav ji

20-Oct-2022 09:31 AM

Very nice

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Ashish Kumar

20-Oct-2022 09:51 AM

जी बहुत-बहुत धन्यवाद

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